रस्सी की चित्रकारी से देश में अलग पहचान बना रहे मशहूर चित्रकार सुरेश पाल वर्मा जसाला
रविवार 9 नवंबर - रविंद्र भवन
DK
11/10/20251 min read


राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रविंद्र भवन में आयोजित प्रदर्शनी में रविवार 9 नवंबर को रस्सी के चित्रकार सुरेश पाल वर्मा जसाला ने ‘अतिथि सम्मान’ समारोह का आयोजन किया गया। इस मौके पर डॉ सुरेन्द्र वर्मा : (चेयरमैन शशि पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल, शाहदरा) की अध्यक्षता में मुख्य अतिथि : प्रो. (डॉ) भरत सिंह (चैयरमेन : पीआईआईटी नोएडा), मुख्य अतिथि : जितेन्द्र बच्चन (मुख्य संवाददाता : राष्ट्रीय जनमोर्चा एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष समाज कल्याण फेडरेशन ऑफ इंडिया), रामकिशोर उपाध्याय (राष्ट्रीय अध्यक्ष युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच दिल्ली), ओमप्रकाश शुक्ल (राष्ट्रीय महासचिव : युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच दिल्ली), अनिल कुमार चौहान (वरिष्ठ वकील: तीस हजारी कोर्ट), योगेश कौशिक (मुख्य संवाददाता जोशिला टाइम्स)तथा अनेकों प्रतिष्ठित कलाकारों, साहित्यकारों और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में दीप जलाकर सम्पन्न हुआ। सभी ने जसाला जी के कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
जसाला जी की ओर से सभी अतिथियों का पटका पहनाकर एवं स्वलिखित पुस्तकें भेंट सम्मान किया गया।
रस्सी सम्राट,रस्सी के चित्रकार सुरेश पाल वर्मा जसाला का व्यक्तित्व
सरल सौम्य छवि के धनी, अपनी बात को दृढ़ता से रखने वाले सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' गांव की माटी के ऐसे कर्मकार हैं जो शिक्षक, कवि, साहित्यकार, नई-नई विधाओं के जनक के साथ चित्रकारी में भी रस्सी के अभिनव प्रयोग से धमाल मचाते हुए, विश्व पटल पर छाए हुए हैं।
सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' उत्तर प्रदेश के शामली जनपद के जसाला गांव की सौंधी खुशबू को अपनी साहित्यिक और चित्रात्मक यात्रा के माध्यम से चारों ओर बिखेर रहे हैं।
कभी बचपन में कलम और रंगों से खेलने वाला, देशी बाण की रस्सी से खाट (चारपाई) बुनने वाला बालक, आज के समय में विश्व स्तर पर अपने चिंतन के लेखन से काव्य तथा साहित्य सृजन में लीन हैं, तो वहीं कूची व रंग से कैनवास सजाते हुए अपनी चित्रकारी को रस्सी के नूतन स्वरूप से संवारा है। उनके द्वारा स्थापित रस्सी के इस नए प्रयोग को देखकर लोग उनके कायल हो गए हैं, और विस्मय से आह - वाह - अनुपम - अद्भुत - शानदार जैसे शब्दों से उनकी चित्रावलियों की प्रशंसा करते हैं, आनंद का अनुभव करते हैं।
चित्रकारी में उनकी संजीदगी और मनभावन उपलब्धि को देखते हुए उन्हें रस्सी का खिलाड़ी या रस्सी सम्राट कहना उनके कर्म का सत्कार है।
व्यक्ति एक रूप अनेक
एक व्यक्ति में कितनी निपुणता हो सकती है, उसके लिए बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' को नजदीक से देखना होगा। बचपन में अभावमय कारणों से डामाडोल घरेलू स्थिति से संघर्ष करते हुए, चित्रकारी में विशेष अभिरुचि रखते हुए और शैक्षिक धरातल पर उच्च कोटि के छात्र रहते हुए अपनी आधारशिला को मजबूती से जमाकर शिक्षक के सम्मानित पद पर आसीन हुए।
शिक्षा जगत में छात्रों के भविष्य को संवारने में शानदार भूमिका के साथ शिष्यों के प्रिय बने रहे। अध्यापन के साथ लेखन की विभिन्न विधाओं में सृजन ही नहीं बल्कि नई-नई विधाओं की स्थापना ही कर दी। उनके द्वारा स्थापित नई पांच विधाएं 'वर्ण पिरामिड या जसाला पिरामिड', 'सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक', विश्व की सबसे छोटी रचना 'मनका', मनका पर आधारित 'मनका गीत' और नवीनतम 'चक्रण छंद या जसाला छंद' हैं। जसाला जी द्वारा स्थापित विधाओं पर भारत के विभिन्न प्रदेशों से, अन्य सृजनकार कवियों की बीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो उनकी नवीन विधाओं की प्रासंगिकता दर्शाती हैं।
अपने कार्यों में सिद्धहस्तता का परिचय देते हुए जसाला जी ने चित्रकारिता को भी रस्सी के अनुपम और नवीन प्रयोग से संवारा है। जसाला जी की रस्सी से बनी बहुआयामी पेंटिंग्स और आर्ट वर्क विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाला काम है, बिग ओर्नामेंट सीरीज अपने आप में अनूठी और सशक्त कलाकारी है, हर कोई उनके कार्य की प्रशंसा करता है। भारत की ग्रामीण विरासत को विश्व पटल पर पहचान दिलाने वाली है।
उनकी एक कविता उनके जुझारूपन का अहसास कराती है -
सच में आंधियों से डरकर जिया नहीं जाता।
बिना आंधियों के मुक़द्दर लिखा नहीं जाता।।
नापते हैं जो नभ के वज्र पिंडों की ताकत।
